हर रोज अपने योग कक्ष में प्रवेश के पहले मैं अपने पौधों से मिलने जाता हूँ. मैं उन पौधों से कई बार मिलता हूँ दिन में क्योंकि जितनी बार भी मिलो हमेशा नए प्रतीत होते हैं. कुछ उनके आसपास घट रहा है हर क्षण. कहीं जीवन घट रहा है, नए पत्ते, नए फूल आ रहे हैं; तो कहीं मृत्यु घट रही है, पत्ते सूख रहे हैं, गिर रहे हैं. प्रकृति हमें इसीलिए आकर्षित करती है क्योंकि उसमें प्रवाह है हर क्षण. प्रकृति के सानिध्य में हमारे जीवन में भी एक प्रवाह आता है और प्रवाह से ताज़गी और सुगंध आती है. जहाँ प्रवाह न हो, वहाँ चीज़ें सड़ने लगती हैं, और दुर्गंध आती है.
न केवल भौतिक जगत में, बल्कि यदि हमारे विचारों में भी कोई नूतनता और प्रवाह न हो, तो वहाँ भी बासापन और सड़ांध आना शुरू हो जाती है. हम स्वयं से ही ऊब उठते हैं और स्वयं से भागने लगते हैं.